ढलती हुई जिंदगी मेरी,, समसान में हो बसेरा मेरा,, घर बड़ी बना दिया बेटों के लिए,, मैं अब हो गया खुद बे घर,, अंसारी,, आशियाना बना अब समसान मेरा,, कहने को तो लाखो है मेरे वक्त पे ना कोई मेरा हैं,, जब तक काम करते थे तब तक थे घर वाले मेरे,, अब तो मैं बुज़ुर्ग हुए अब कहा कोई मेरा,, ढलती हुई उम्र मेरा,,