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कागज की कश्ती वो बचपन की मस्ती, अब बनाने में लगे ह

कागज की कश्ती वो बचपन की मस्ती,
अब बनाने में लगे हैं खुद को बड़ी हस्ती..!

पर दिन थे सुहाने वो बचपने के फ़साने,
ख़ुशियाँ थी तब बड़ी ही सस्ती..!

वो यारों की टोली हँसमुख बोली,
स्कूल के बस्ते की बना के झोली..!

अब याद हैं आती वो जेबें ख़ाली,
एक रुपये के पीछे ही बनती दिवाली..!

अब तो सभी अपने अपने में मस्त हैं,
पर बचपन की यादें अब भी हैं डसती..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Women #kashti