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कितना कुछ है जीवन में.. उससे ज्यादा ठहरा इस मन मे

कितना कुछ है जीवन में.. 
उससे ज्यादा ठहरा इस मन में..

जीवन जैसे कोई निर्बाध सरिता.. 
अथाह समुद्र तो समाया मन में, 

कितनी ही पीड़ा इस तन को.. 
उससे भी ज्यादा मिले मन को.. 

कभी जो क्षणिक लगाव मिले, 
उससे ज्यादा मन को घाव मिले.. 

जीवन में जैसे कहीं न ठैराव, 
जहाँ द्वेष वहाँ नेह का अभाव...

कहीं तो मन को मिले उमंग,
कहीं तो प्रेम की छाँव मिले..

पग पग  जीवन में  संघर्ष..
कभी तो मन को हर्ष मिले, 

कितना कुछ है जीवन में,
उससे ज्यादा ठहरा इस मन में..

©Chanchal's poetry
  #Jeewan