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कुछ क्षण बाद, कुटिया के भीतर शिष्य ने प्रवेश किया

कुछ क्षण बाद, कुटिया के भीतर शिष्य ने प्रवेश किया और गुरु को सिर झुकाकर प्रणाम किया | गुरु ने आशीर्वाद देते हुए कहा – बेटा ! मैंने आज जिस पारस पत्थर की कहानी सुनाई वो पत्थर मेरे पास हैं और तुम मेरे प्रिय शिष्य हो इसलिए मैं वो पत्थर सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक के लिए तुम्हे देना चाहता हूँ | तुम उससे जो करना चाहों कर सकते हो | तुम्हे जीतना स्वर्ण चाहिये तुम इस पत्थर से इस दिए गये समय में बना सकते हो | यह सुनकर शिष्य की ख़ुशी का ठिकाना न था | गुरु जी ने उसे प्रातः सूर्योदय होने पर पत्थर देने का कहा |रात भर वह इस पत्थर के बारे में सोचता रहा |

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AJAYPAL

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