क्या वो मंज़र याद है तुमको? जब चुप रहते हुए लोगों से बचते हुए हम दोनों ने सालों साल अपनी छतों पर खड़े रहकर वादों का एक पुल बांधा था निगाहों से (शेष अनुशीर्षक में.....) क्या वो मंज़र याद है तुमको? जब चुप रहते हुए लोगों से बचते हुए हम दोनों ने सालों साल अपनी छतों पर खड़े रहकर वादों का एक पुल बांधा था निगाहों से