अंतिम साँसें ले रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा प्रार्थी हूँ , नफ़रत और धृणा स्वाभाविक है, हर लिया है जो तुम्हारा बहुत कुछ, बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, पत्नी से पति को, ना जाने कितने रिश्तों से रिश्तों को, उद्द्योग धंधा , ऐशो आराम, सुख चैन, क्या क्या गिनाऊँ , लंबी ह सुचियाँ, द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है , घृणा है, इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे, कब आएगी चैन की नींद, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।। दीवार की कील से, टूटने वाला ही है, अब मेरी साँसें, इतिहास बनने को हूँ तैयार , मगर मेरे भाई मेरे अजीज लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को किया स्वक्ष पानी, पेड़ों को दी हरियाली, पहाड़ों के झरनोे की किया फिर जीवंत बेघर पशु-पक्षियों को घर, घुटती धड़कनों को दिया सांसें, जीवन को समझाया प्रकृति का अर्थ, रिश्तों को प्यार और मिलन, बागों में फूलों की बहार, सर्दी की बर्फ़, गर्मी को शीतल हवाएं, प्यासी मिट्टी को पिलाई बारिस की बूंदे, ज़िंदगी को प्रकृति की सौगात, रखना याद हर हार के बाद है जीत, हर दर्द की आह बताती है खूंशी का मोल, जा रहा हूँ,मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।। पीड़ा को नहीं हर्ष को याद रखना, दिखाया जो तुम्हें आईना, उसे संजोग रखना, प्रकृति से अब और मत करना खिलवाड़, संसार व्यक्तिगत नही , किसी की बपौती नहीं है, याद रखना, ज़्यादा नहीं,थोड़े की है ज़रूरत, स्वार्थ भरी ज़िंदगी की, बदल लो सूरत, खुशियों से भरा साल आएगा दो हज़ार इक्कीस मेरे स्थान पर, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस.... 🙏निशीथ🙏 ©Nisheeth pandey अंतिम साँसें ले रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा प्रार्थी हूँ , नफ़रत और धृणा स्वाभाविक है, हर लिया है जो तुम्हारा बहुत कुछ, बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, पत्नी से पति को,