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◆सफ़र◆ निकला हूँ सफ़र पे यूँ तन्हा अकेला मसला ये है

◆सफ़र◆
निकला हूँ सफ़र पे यूँ तन्हा अकेला
मसला ये है के अब तलक मुक़म्मल साथ न मिला तेरा
खुले आसमान में चाँद भी साथ चल रहा है
पर तेरे न होने से ये जी मचल रहा है
कहने को तो बहुत कुछ है मगर
मैं जानता हूँ तू महबूब किसी और का है
जफ़ा कर रहे हो जो साथ छोड़कर यूँ मुझपर
रास्ते-फिजायें-आसमाँ चीख़ के ये बयाँ कर रहा है
ज़ाहिर है ताब्दिलगी हुई जो तेरे जज़्बातों में
था ज़ेहन में हरदम अपने तज़ुर्बे से हर एक मुलाक़ातों में
तस्लीम है तुझे ऐ हुश्न-ए-जहाँ
तू याद कर या न कर, बस फ़ैज रख
इल्तज़ा है बस इतनी सी तुझसे 
वफ़ा रख सदके जहाँ सबसे
ख़्वाहिश तो बाकी है कि रिश्ता सुधरे, रंजिशें अपनी जगह हैं
पर चाहत ये भी है कि अब पहल सामने से की जाए
न हो सके तो ऐतबार तो इंकार ही कर दी जाए
ख़ुदकुशी की हिम्मत न है मुझमें अब
बस दुआ करो कि सफ़र में कोई हादसा हो जाए
और इससे पहले की मैं लाश बन जाऊं
ख़्वाहिश है के एक बार ही सही, सलामती पूछ ली जाए

©Ravishing Roshan #nojoto2021 
#Poetry 
#hindipoetry 
#mydiarymythought 
#mypenmywords 
#poetryoflife 
#सफर_ए_ज़िन्दगी 
#AWritersStory
◆सफ़र◆
निकला हूँ सफ़र पे यूँ तन्हा अकेला
मसला ये है के अब तलक मुक़म्मल साथ न मिला तेरा
खुले आसमान में चाँद भी साथ चल रहा है
पर तेरे न होने से ये जी मचल रहा है
कहने को तो बहुत कुछ है मगर
मैं जानता हूँ तू महबूब किसी और का है
जफ़ा कर रहे हो जो साथ छोड़कर यूँ मुझपर
रास्ते-फिजायें-आसमाँ चीख़ के ये बयाँ कर रहा है
ज़ाहिर है ताब्दिलगी हुई जो तेरे जज़्बातों में
था ज़ेहन में हरदम अपने तज़ुर्बे से हर एक मुलाक़ातों में
तस्लीम है तुझे ऐ हुश्न-ए-जहाँ
तू याद कर या न कर, बस फ़ैज रख
इल्तज़ा है बस इतनी सी तुझसे 
वफ़ा रख सदके जहाँ सबसे
ख़्वाहिश तो बाकी है कि रिश्ता सुधरे, रंजिशें अपनी जगह हैं
पर चाहत ये भी है कि अब पहल सामने से की जाए
न हो सके तो ऐतबार तो इंकार ही कर दी जाए
ख़ुदकुशी की हिम्मत न है मुझमें अब
बस दुआ करो कि सफ़र में कोई हादसा हो जाए
और इससे पहले की मैं लाश बन जाऊं
ख़्वाहिश है के एक बार ही सही, सलामती पूछ ली जाए

©Ravishing Roshan #nojoto2021 
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