बीत रहा समय दिन गुजर जा रहे हैं पर हमे ना पता हम किधर जा रहे हैं माटी की गंध से भूत को भूल कर ऐसे आपस के मैं,मैं से मर जा रहे हैं।। प्रेम प्रेमी के प्रेम से ठहर जा रहे हैं भूलकर अपनी भूल कई गदर जा रहे हैं प्रेम के उस गली के यूं तो प्रेमी बहुत, भीड़ में भीड़ बनके इस कदर जा रहे हैं।। बांगो के फूलों में तो भंवर जा रहे हैं भाग्य के खेल से कुछ संवर जा रहे हैं धुंधला धुंधला सुबह धुंधली धुंधली है शाम कुछ नहीं दिख रहा उस डगर जा रहे हैं।। Aakash Dwivedi ✍️ ©Aakash Dwivedi #talaash #shayri #शायरी #Like #Love #VAIRAL #कविता #AakashDwivedi #Stories