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निकाल कर दिल अपना,तेरे कदमों में बिछाया था..! हाय

 निकाल कर दिल अपना,तेरे कदमों में बिछाया था..!
हाय! जीवन की सबसे बड़ी,भूल मैं कर आया था..!

मेरा साथ कुछ क़दमों तक,चाहिए था केवल तुझे..!
मैं ज़िन्दगी भर बन कर,रहा सुख का तेरा साया था..!

चाहत के बाद भी चारदीवारी,न नसीब हुई दिल की..!
ज़ुल्म-ओ-सितम की हद तो देखो,गैरों की बाँहों में वो मुस्कुराया था..!

जलती रही चिता अरमानों की जीवन भर,निश्छल प्रेम जो निभाया था..!
भरोसे का कर के क़त्ल सही किया तुमने,शायद पिछले जन्म का कुछ बकाया था..!

हम तो रहे तकदीर के मारे सदा,तस्वीरों को तसव्वुर में बसाया था..!
पर मालुम न था मिलेगी मौत ऐसी,आस्तीन के साँप से ख़ुद को डसाया था..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #sadak #dilapna