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दो जिस्म एक जान हैं हम। मेरे इस दिल के अरमान हो

  दो जिस्म एक जान हैं हम।
मेरे इस दिल के अरमान हो तुम।
 तुम में, हम में,ये दूरी क्यों है,
फिर क्यों इक दूजे से अब भी अंजान हैं हम ।
फासला नही होता कोई भी इतना बड़ा ।
माफ़ कर दो जो हुई है हमसे खता।
मिटा भी दो अब ये दूरियां,
जो भी है दिल में, उसे  कहकर तो जता।।

रश्मि वत्स।

©Rashmi Vats
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