हैरत हो रही है देख दुनियाँ के रंग ढंग सब अपने आप में ही रहते हैं गुम कभी यार दोस्तों संघ महफ़िल जमती थी अब मिल गए हैं नए दोस्त फोन के किसी एप पर कभी माता पिता के पैरों में जन्नत हुआ करती थी अब उनके पैरों को छूने में शर्म आने लगी है एक ही घर में रहकर एक दूसरे से मिलने की फुर्सत नहीं फोन पे बात हो जाती है हाल चाल पुछने की भी जहमत नहीं कभी यादों को अकेले बैठ कर याद करने में सुकून मिलता था अब यादें हीं नहीं कोई ऐसी जो बिताएं हो साथ अपनों के पल कोई ©Ankur Mishra #हैरत #walkingalone