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देवशयनी एकादशी --- मान्यताओं के अनुसार इस दिन से

देवशयनी एकादशी ---

मान्यताओं के अनुसार इस दिन से देवताओं का रात्रिकाल आरंभ हो जाता है और वह सो जाते हैं।
समय की इस श्रृंखला को हम "चातुर्मास" के नाम से जानते हैं।यह "देवप्रबोधिनी" एकादशी वाले दिन पूर्ण होता है।
क्या आप जानते हैं इसका क्या महत्व है आख़िर क्यों होता है चातुर्मास?

कैप्शन देख लें---- यह इस देश की एक महान परम्परा है कि वर्षा ऋतु में देव सो जाते हैं।
सभी धार्मिक या शुभ कार्य ठहर जाते हैं। पूरा देश सामाजिक चिन्तन व समस्याओं के निवारण में व्यस्त हो जाता है। बरसात के कारण पैदल चलने वाले साधु-संतों का आवागमन ठहर जाता है। वे भी इस काल में समाज को उपलब्ध रहते हैं।
उनकी निश्रा में विभिन्न सम्प्रदाय एवं समूह अपने-अपने विषयों पर चर्चा करते हैं।
भारतीय दर्शन के संन्यास आश्रम की भूमिका भी यही है।
तभी संतों का निर्वाह समाज करता है। चातुर्मास संतों के लिए इस उधार को चुकाने का अवसर भी है।
चार मास का काल छोटा नहीं होता। समाज के हर वर्ग के लोग अपने-अपने संतों के पास जाते हैं।
राष्ट्रीय मुद्दों पर भी विचार-विमर्श होना एक उद्देश्य होना चाहिए।
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देवशयनी एकादशी ---

मान्यताओं के अनुसार इस दिन से देवताओं का रात्रिकाल आरंभ हो जाता है और वह सो जाते हैं।
समय की इस श्रृंखला को हम "चातुर्मास" के नाम से जानते हैं।यह "देवप्रबोधिनी" एकादशी वाले दिन पूर्ण होता है।
क्या आप जानते हैं इसका क्या महत्व है आख़िर क्यों होता है चातुर्मास?

कैप्शन देख लें---- यह इस देश की एक महान परम्परा है कि वर्षा ऋतु में देव सो जाते हैं।
सभी धार्मिक या शुभ कार्य ठहर जाते हैं। पूरा देश सामाजिक चिन्तन व समस्याओं के निवारण में व्यस्त हो जाता है। बरसात के कारण पैदल चलने वाले साधु-संतों का आवागमन ठहर जाता है। वे भी इस काल में समाज को उपलब्ध रहते हैं।
उनकी निश्रा में विभिन्न सम्प्रदाय एवं समूह अपने-अपने विषयों पर चर्चा करते हैं।
भारतीय दर्शन के संन्यास आश्रम की भूमिका भी यही है।
तभी संतों का निर्वाह समाज करता है। चातुर्मास संतों के लिए इस उधार को चुकाने का अवसर भी है।
चार मास का काल छोटा नहीं होता। समाज के हर वर्ग के लोग अपने-अपने संतों के पास जाते हैं।
राष्ट्रीय मुद्दों पर भी विचार-विमर्श होना एक उद्देश्य होना चाहिए।
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