हर रंग तेरे ही गालों को तरसे जैसे नशा होशवालों को तरसे जब भूल जाए परिंदा उड़ानें तो आसमां छोड़ जालों को तरसे ये सोच के आज़ सजदा किया है आँखें न उसकी रूमालों को तरसे सब दोस्तों से बिछड़ना हुआ तो मोहन भी गोकुल के ग्वालों को तरसे होली पे तुमको टिकट ना मिली तो घर मां का चेहरा गुलालों को तरसे ©Vivek Vistar हर रंग तेरे ही गालों को तरसे जैसे नशा होशवालों को तरसे जब भूल जाए परिंदा उड़ानें तो आसमां छोड़ जालों को तरसे ये सोच के आज़ सजदा किया है आँखें न उसकी रूमालों को तरसे