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कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास मे

कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में ,




जो मैं बन-संवर के कही चलु, मेरे साथ तुम भी चला करो ...

©꧁ARSHU꧂ارشد
  कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-संवर के कही चलु, मेरे साथ तुम भी चला करो.. Niaz (Harf) advocate SURAJ PAL SINGH Anupriya jhanvi Singh Shayra

कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में जो मैं बन-संवर के कही चलु, मेरे साथ तुम भी चला करो.. @Niaz (Harf) @advocate SURAJ PAL SINGH @Anupriya @jhanvi Singh @Shayra #Shayari

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