मत उलझा हमें बहर के हिसाबों में, हम तो दर्द में लिखे लफ़्ज़ों को ग़ज़ल कहतें हैं। यारी भी नसीब होती है खुशनसीबों को आजकल, हम तो रूठते मनाते यारों को ग़ज़ल कहतें हैं। छू कर बाग बाग हो जातीं है कलियां, इश्क भरे उन होठों को गजल कहते हैं। तेरे कदमों के ठोकरों से जो टूटे थें, हम दिल के उन टुकड़ों को ग़ज़ल कहतें हैं। तूफानों में भी बिना हिले चलना सिखाया है मुझको, हम उन माँ के दुआओं को ग़ज़ल कहतें हैं। मधुशालों में ही मिल जाती हैं तन्हाइयों को महफिलें, हम तो दर्द में शरीक उन शराबों को ग़ज़ल कहते हैं। चुपचाप दबा रह जाए सदियों तक इश्क समेटे "मलिका", हम तो किताबों में दबे उन गुलाबों को गजल कहतें है। लाइफ