पिता! ख़ुशी का चिराग़ जलाना है ज़ख़्मों की मशाल नहीं काट डालना है जंगल अँधेरों का वैसे भी तेरी दुआ के साये में हम हैं महफ़ूज़ तेरा वजूद है पूरी कश्ती की तरह और हम हैं कश्ती के सिर्फ़ तख़्ते इसलिए बेदर्द होश कर देते हैं बेचैन हमें लाख तल्ख़ी के बाद भी ज़िम्मेदारी है जीने की # पिता!ख़ुशी का चिराग़ जलाना है ज़ख़्मों की मशाल नहीं