ये प्रेम भाव का रस है प्रिए हर कोई नहीं पचा पाता हो कितना भी सीधा साधा इस रोग से खुद को ना बचा पाता हो गया जो इक बार को ये मदहोशी है जगा जाता गर हो सच्चा तो रंग गहरा चढ़ता वरना दो दिन में ही है असल रंग दिखलाता भर दे बड़े से बड़ा ज़ख्म ये गर हो फरेब तो नासूर है बन जाता कभी मिलन की खुशी इसमें कभी वैराग्य के धुन है सुनाता कभी चट्टान सा मजबूत कर दे तुमको कभी रेत बनकर बिखराता ये प्रेम भाव का रस है प्रिए........ #chp#love#after a long time#ishanu