निशब्द प्रेम का प्यासा मै एक शब्द नहीं कहने को है ना रहने को हृदय तेरा बस पीड़ा ही सहने को है। जो मिल जाओ तुम मुझे प्रिय मै तृप्त प्रेम से हो जाऊं बिंध कर तेरे नयन बाण से मै मुक्त पाश से हो जाऊं। ओष्ठ तुम्हारे कमल पंख यें बन जायें मेरी मधुशाला खो बैठूं सुध बुध मैं अपनी क्षण ना हो कोई विरह वाला। ग्रीवा नक्र चिबुक तेरे क्या कलाकृति उस सृष्टा की रच दिया चन्द्र धरती पे उसने दृष्टि भी मोहित दृष्टा की। अतृप्त।