भुलक्कड़ कहीं की तुम्हें याद करती हूँ मगर कहना भूल जाती हूँ कि मेरे तुम्हारे दरमियान नाज़ुक सा कुछ है जो मुझसे लिपटकर सिमटकर रहता है मुझमें सदैव तुम्हारे लिए शायद वही नाज़ुक सा कुछ तुम्हें भी घेर लेता होगा समेट लेता होगा मेरे लिए... और तुम भी मेरी तरह हो न भुलक्कड़ कहीं के। भुलक्कड़ कहीं के