अकेली हुँ पर अकेली ही काफि हुँ जिंदगी के इस सफ़र पर खुदकी ही साथी हुँ जो छुट गया उसके लिए एक याद पुरानी हुँ, और जिसे आंखो में बसा लिया उसके लिए काजल की तरह नूरानी हुँ बेशक अकेली हुँ पर अकेली ही काफि हुँ!! जो मुज़ाबानी याद हो जाये एक ऐसी ही कहानी हुँ बारिश के मौसम में इंद्रधनुष की तरह सुहानी हुँ, दिल और दिमाग के अक्सर ही फ़ाश जाती हुँ और खुदके फेसले से कभी- कभी खुद ही रूठ जाती हुँ बेशक अकेली हुँ पर अकेली ही काफि हुँ!! जिनके दिल हुँ उनको दिल से लगा कर राखती हुँ, और जिने नहीं पसंद उनसे भी हँस कर हाथ मिलती हुँ , आंखों की नमी और चेहरे की उदासी को हसी में बदलना चाहती हुँ, फ़ना होने भी अपनी कविता से लोगों के दिलों में धढकना चाहती हुँ!! ©Zaheen Parveen Shah अकेली हुँ पर अकेली ही काफि हुँ #Winters