Alone जिन के साथ रहने के कभी सपने लिए थे , वो आज एक सपना बन के रह गए। कोशिश तो बहुत कि वक़्त को रोकने कि, पर एक लम्हा बन के रह गए। शायद दुआओं में ज़ोर हमारी भी था , जो वो आए ज़िंदगी में , पर मुकदर कमज़ोर होंगे जो ढह गए। अब तो एक दौर एसा आया है, साथ रहने का खयाल तो है पर ज़ा या है। खामियां उन में भी थी, तो हम भी कोन सा दूध के धुले हैं, हम ने भी उन्हें बहुत रुलाया है। सच झूठ के जाल में एसा फसाया, कि सांस लेना भी दुष्वार कर लिया, उन पर सवाल करते करते , खुद को ही सवाल कर लिया। वरना मोका हमें भी मिला था, हमने खुद को बेकार कर लिया। ~शुभम मनचंदा by shubham manchanda