मरुस्थल में तपते रेत पर, इस छोर से उस छोर कुछ पाने की चाह में, बेतहाशा दौड़ रहे हैं सब दौड़ रहे हैं लेकिन मृगतृष्णा..... ऊंची डाल पर बैठे पंछी का सुन कलरव, प्रहलादित हो कई बार कभी लड़खड़ाते कदमों से तृप्त करने अंतर्मन की प्यास सब भाग रहे हैं लेकिन मृगतष्णा.... डूब रहा सूरज फैल रहा अंधकार क्या खोया क्या पाया उलझ गया सवाल व्यर्थ की इस भागमभाग में लेकिन सबके खाली हाथ है ये केवल मृगतष्णा, मृगतष्णा ।। 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 हम भटकते हैं,,क्यों भटकते हैं ए दिल ए नादान मौज प्यासी है अपने दरिया में ए दिल ए नादान Beautiful song🌹 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺