शहिद ए आजम नौजवान था वो हिन्द का हिन्द पर ही जाँ निसार करता था इश्क की लफ्ज नही वादियाँ ए इंकलाब करता था । कुर्जीत हो गयी वफ़ा तहसील की हुकूमत जब अंग्रेज का आया इंकलाब का नारा लगा कर वो रज़ा अपनी बताया ।। सवाल लाखो छोड़ गया ,अधर में ही उम्मीदों को तोड़ गया , साजिश का हुआ शिकार जन जन कर रहे थे चीत्कार।। लाखो सवाल लिए जन जन घूम रहे थे दहशत दिखाई भगत ने,बापू को पूजा जगत ने, क्या आजादी के दीवानों का मोल नही या उनकी रवानी की जवानी का कोई तौल नही।। पूछ अभी रहा है कवित से क्यों हिन्द भगत है कटघरे में खड़े ,क्या उनकी कुर्बानी का ये तोहफा है या जिल्लत बेगर्द की कोई जफ़ा है ।। #शहीद भगत