एक उभरता भविष्य खत्म हो गए । गाँव की राजनीति आपसी तकरार में, वो इंसानियत खो बैठा कुछ लोगो के प्रभाव में। यहाँ अपनो ने लाशों पर गिरते रहे, मगर अपनी प्रधान व्यस्त रहे राजनीतिक की तकरार में । वो मतलबी है पास आते है अपनी परोपकार में , बदलाव भी हो जाता है समय के साथ इनके स्वभाव में। देकर मुआवजा महज चंद रुपयों का जान के बदले, रगड़ेंगे नमक फिर से ये नामुराद गरीबों के घाव में । वो भी आज कत्ल कर जिंदा घूम रहे है गांव की गलियों की छांव मे, उनके अपने फिर भी बात करने लगते हैं ये ताव में। उनले घरों में मातम से आज कल भी चूल्हे नहीं जले, और अपने घरों में बैठे बेशर्म खा रहे छप्पन भोग बड़े चाव में ।। ©Amit kumar R I P