युँ अचानक दोस्ती में बेरुख़ी किस बात की है? जिसका हमें सही अंदाजा भी नहीं, मुझे हेरानी ईस बात कि हैं कि मे ईतनी निराश क्यों थी, क्योंकि तुम्हारे अनुसार तो मुझे तुमसे कोई आश ही क्यों थी! सब कुछ तुमने अपने मन का किया ना! आखिर दोस्ती मे मुझे हरा दिया ना! जब दोस्ती करनी ही नहीं थी, तो दोस्ती की चाह ही क्यों दी? अब तो दोस्ती बुरी लगती हैं बुराई से ज्यादा। तुम्हारी वजह से डर लगता है हर एक दोस्त से, कई उम्मीद ना लग जाए एक और दोस्त से। दील से कहु तो मुझे दोस्ती करनी ही नहीं चाहिए थी, मे बनी ही नहीं दोस्ती क रिश्ते के लिए। मैं तो दोस्ती के पीछे कभी थी ही नहीं, अब देखो, दोस्ती के आगे मुझे कुछ दीखता ही नही। ©Urvisha Parmar #अनचाही_दोस्तीकी_शुरुआत4 #friends