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मैं एक फूल हूँ ,पर काँटो में भी पनप जाता हूँ

मैं  एक  फूल हूँ ,पर  काँटो  में  भी  पनप जाता हूँ,
भले ही नाजुक हूँ ,पर अँधेरों में भी चमक जाता हूँ,

अभी  मुरझा  गया  हूँ  मैं , वक़्त के तेज़ तूफान से,
पर  जुड़ा  हूँ  अभी भी , अपने  उसी  गुलिस्तान से,

एक  दिन फ़िर खिलूँगा ,थोड़ी महक मुझमें बाक़ी है,
अभी ज़िन्दा हूँ मैं ,ये   एक  यकीन  मुझमें  बाक़ी है,

बिखर जाता कभी का ,जो ये हौसले न ज़िन्दा रखते,
मेेरे  मन  के   अंधेरे    जो , रोशनी को शर्मिंदा रखते,

एक  बार  फ़िर  से  फूटेंगें ,मेरे मुरझाए तन में अंकुर,
झूमेगी    फ़िर   प्रकृति , नाचेंगे   फिर    नव प्रांकुर ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey #Argentina 
#मुरझा गया हूँ
मैं  एक  फूल हूँ ,पर  काँटो  में  भी  पनप जाता हूँ,
भले ही नाजुक हूँ ,पर अँधेरों में भी चमक जाता हूँ,

अभी  मुरझा  गया  हूँ  मैं , वक़्त के तेज़ तूफान से,
पर  जुड़ा  हूँ  अभी भी , अपने  उसी  गुलिस्तान से,

एक  दिन फ़िर खिलूँगा ,थोड़ी महक मुझमें बाक़ी है,
अभी ज़िन्दा हूँ मैं ,ये   एक  यकीन  मुझमें  बाक़ी है,

बिखर जाता कभी का ,जो ये हौसले न ज़िन्दा रखते,
मेेरे  मन  के   अंधेरे    जो , रोशनी को शर्मिंदा रखते,

एक  बार  फ़िर  से  फूटेंगें ,मेरे मुरझाए तन में अंकुर,
झूमेगी    फ़िर   प्रकृति , नाचेंगे   फिर    नव प्रांकुर ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey #Argentina 
#मुरझा गया हूँ