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जो भी लाना दो लाना जब किसी व्यक्ति को किसी से प्र

जो भी लाना दो लाना  जब किसी व्यक्ति को किसी से प्रेम होता है 
तो क्या होता है? उसके दिमाग में और कोई 
बात नहीं आती बस एक ही ख्याल
रहता है कि जिससे प्रेम है उस 
पर कैसे प्रभाव डाला जाए। 
वह हमेशा अपने प्रेमास्पद
के बारे में सोचता है। 
यदि वह खुद के बारे में 
भी सोचता है तो अपने 
प्रेमी या प्रेयसी के बारे में 
ही सोचता है। वह ऐसे कपड़े 
पहनना चाहता है, जो उसे पसंद आए। 
वह ऐसी चीजें करना चाहता है तो उसके 
प्रेमास्पद को पसंद आए। हम जिससे प्रेम 
करते हैं तो चाहते हैं कि उसे हर तरह का 
आराम मिले, सुविधा मिले। वे हमारे किसी 
कृत्य से आहत न हों और वे खुश रहें। बड़े 
ही सूक्ष्म तरीके से आप घूलते चले जाते हैं।
जब ऐसे प्रेम का आपको अनुभव हो 
तो जरा खुद पर नज़र डालिए। आपका 
व्यक्तित्व घुलना शुरू होता है। यदि आप 
वाकई किसी को चाहते हैं तो क्या आप 
सिर्फ उनके लिए ही वहां मौजूद नहीं होते? 
या आप उन्हें अपने प्रेम का लक्ष्य बनाने के 
बारे में सोचते हैं? इन दो प्रश्नों के जवाब 
के फर्क में ही मौजूद है असली प्रेम की 
पहचान। प्रेमी कहता है कि मैं तुम्हारी खुशी, 
तुम्हारी प्रसन्नता और तुम्हारी सुख-
सुविधा के लिए मौजूद हूं। इस 
दुनिया में तुम्हारे अलावा कुछ 
भी मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं 
है। ऐसा प्रेम ही जीने योग्य
है फिर चाहे कोई इस धरती 
पर पांच मिनट, पांच माह या 
पांच साल जीये। इस तरह के 
निस्वार्थप्रेम के कुछ पल जीवन को जीने 
योग्य बनाते हैं। ऐसा एक पर केंद्रित, 
एक के लिए समर्पण सबसे महत्वपूर्ण
है। इसकी रोशनी में संपूर्ण सृष्टि आनंदित 
होती है, प्रफुल्लित होती है। आपके भीतर 
जो पुष्प खिला है उससे पत्थर भी आनंदित 
होते हैं। यह तो प्रेम का पुष्प अपने भीतर 
खिलने का अनुभव है लेकिन, ऐसे गहरे 
प्रेम, समर्पण के बारे में सिर्फ सुनकर भी 
आंखों से आंसू बहने लगते हैं। I will be
जो भी लाना दो लाना  जब किसी व्यक्ति को किसी से प्रेम होता है 
तो क्या होता है? उसके दिमाग में और कोई 
बात नहीं आती बस एक ही ख्याल
रहता है कि जिससे प्रेम है उस 
पर कैसे प्रभाव डाला जाए। 
वह हमेशा अपने प्रेमास्पद
के बारे में सोचता है। 
यदि वह खुद के बारे में 
भी सोचता है तो अपने 
प्रेमी या प्रेयसी के बारे में 
ही सोचता है। वह ऐसे कपड़े 
पहनना चाहता है, जो उसे पसंद आए। 
वह ऐसी चीजें करना चाहता है तो उसके 
प्रेमास्पद को पसंद आए। हम जिससे प्रेम 
करते हैं तो चाहते हैं कि उसे हर तरह का 
आराम मिले, सुविधा मिले। वे हमारे किसी 
कृत्य से आहत न हों और वे खुश रहें। बड़े 
ही सूक्ष्म तरीके से आप घूलते चले जाते हैं।
जब ऐसे प्रेम का आपको अनुभव हो 
तो जरा खुद पर नज़र डालिए। आपका 
व्यक्तित्व घुलना शुरू होता है। यदि आप 
वाकई किसी को चाहते हैं तो क्या आप 
सिर्फ उनके लिए ही वहां मौजूद नहीं होते? 
या आप उन्हें अपने प्रेम का लक्ष्य बनाने के 
बारे में सोचते हैं? इन दो प्रश्नों के जवाब 
के फर्क में ही मौजूद है असली प्रेम की 
पहचान। प्रेमी कहता है कि मैं तुम्हारी खुशी, 
तुम्हारी प्रसन्नता और तुम्हारी सुख-
सुविधा के लिए मौजूद हूं। इस 
दुनिया में तुम्हारे अलावा कुछ 
भी मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं 
है। ऐसा प्रेम ही जीने योग्य
है फिर चाहे कोई इस धरती 
पर पांच मिनट, पांच माह या 
पांच साल जीये। इस तरह के 
निस्वार्थप्रेम के कुछ पल जीवन को जीने 
योग्य बनाते हैं। ऐसा एक पर केंद्रित, 
एक के लिए समर्पण सबसे महत्वपूर्ण
है। इसकी रोशनी में संपूर्ण सृष्टि आनंदित 
होती है, प्रफुल्लित होती है। आपके भीतर 
जो पुष्प खिला है उससे पत्थर भी आनंदित 
होते हैं। यह तो प्रेम का पुष्प अपने भीतर 
खिलने का अनुभव है लेकिन, ऐसे गहरे 
प्रेम, समर्पण के बारे में सिर्फ सुनकर भी 
आंखों से आंसू बहने लगते हैं। I will be