मुझे ठहराव चाहिए है असल जिंदगानी में, तड़प की जिंदगी तो नही चाहिए जिंदगानी में, असल में सामने मेरे है वो फिर भी नही मालूम , मोहब्बत भी लुटी कैसी है ये तेरी ही जिंदगानी में, प्रियांशु मिश्र जिंदगानी