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हो निष्ठुर करके जतन एक ख्वाब हमने सजाया था, शुद्ध

हो निष्ठुर  करके जतन एक ख्वाब हमने सजाया था,
शुद्ध, पावन, नवजात मन में एक बीज हमने बोया था,
बीज तो ना रहा उजड़े हुए उपवन की राख बाकी रह गई,
निश्छल,अतृप्त मन की बिखरी हुई एक आस बाकी रह गई,

मन के स्वेत शून्य में गतिमान अनंत अविचल जो विचार हैं,
हां प्राणमय व उन्मुक्त हैं मिथ्या जीवन का ये आभार हैं,
हैं अल्पता ना भाव की, तत्पर अधुरी, हर बात बाकी रह गई,
निश्छल,अतृप्त मन की बिखरी हुईं एक आस बाकी रह गई,

निसंदेह तपता हैं हृदय, हाय! निकृष्ट इतनी हीनता!
पीड़ा की चर्मोत्कशर्ता हैं व्यथित हिय की दीनता,
इस उर में खुशियों की कहीं सौगात बाकी रह गईं,
हां कोमल और सुकुमार मन की आस बाकी रह गईं,

अक्ष निर्जल अग्नि समेटते, अमिय स्वप्न वात हों चले,
परिश्रांत से अधीर अवय हैं अब जस की रात हो चले,
जीवन अस्थिर हैं घड़ी सी, निग्रह सी ये सांस बाकी रह गईं,
निश्छल, अतृप्त मन की बिखरी हुईं एक आस बाकी रह गईं,

©shalmali shreyanker
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 ANKIT Chaudhary SURAJ writer Mohabbat aazmi  Barkha B.H.U Neeraj Singh Raikwar