Nojoto: Largest Storytelling Platform

नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट। मीठी मीठी सी

नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट।
मीठी मीठी  सी  लगी , वो नयनो  की चोट।।

लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर।
भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतलाऊँ तोर।।

प्रथम दर्श की व्यथा जो ,  कैसे कहूँ बताय।
प्यासे नयना मिलन को, किसको दूँ बतलाय।।

भाव विहल वो भी रही, मैं प्रेम भाव खोय।
सूझ परी ना दोन कों ,हस सके न हीं रोय ।।

छाँयाँ सी अंकित भई , खीच हृदय के तार।
द्रवित नयन उसके भये,रोया मैं  दिन रात।।

बनी सखी सी कलम जो, दिया मन मैं उतार।
आहट हलकी भी भई  , देखूँ खोल   किबार।।

उलझन मन की बहुत है,कैसे पाऊँ पार।
टोटा पड़ा लगाव का,कैसे हो व्यापार।।

आचमनन को तरस रही,आँखे हे करतार।
 दिन दिन बड़ती पीर है,व्यर्थ लागे संसार।। नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट।
मीठी मीठी  सी  लगी , वो नयनो  की चोट।।

लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर।
भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतलाऊँ तोर।।

प्रथम दर्श की व्यथा जो ,  कैसे कहूँ बताय।
प्यासे नयना मिलन को, किसको दूँ बतलाय।।
नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट।
मीठी मीठी  सी  लगी , वो नयनो  की चोट।।

लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर।
भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतलाऊँ तोर।।

प्रथम दर्श की व्यथा जो ,  कैसे कहूँ बताय।
प्यासे नयना मिलन को, किसको दूँ बतलाय।।

भाव विहल वो भी रही, मैं प्रेम भाव खोय।
सूझ परी ना दोन कों ,हस सके न हीं रोय ।।

छाँयाँ सी अंकित भई , खीच हृदय के तार।
द्रवित नयन उसके भये,रोया मैं  दिन रात।।

बनी सखी सी कलम जो, दिया मन मैं उतार।
आहट हलकी भी भई  , देखूँ खोल   किबार।।

उलझन मन की बहुत है,कैसे पाऊँ पार।
टोटा पड़ा लगाव का,कैसे हो व्यापार।।

आचमनन को तरस रही,आँखे हे करतार।
 दिन दिन बड़ती पीर है,व्यर्थ लागे संसार।। नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट।
मीठी मीठी  सी  लगी , वो नयनो  की चोट।।

लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर।
भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतलाऊँ तोर।।

प्रथम दर्श की व्यथा जो ,  कैसे कहूँ बताय।
प्यासे नयना मिलन को, किसको दूँ बतलाय।।

नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट। मीठी मीठी सी लगी , वो नयनो की चोट।। लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर। भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतलाऊँ तोर।। प्रथम दर्श की व्यथा जो , कैसे कहूँ बताय। प्यासे नयना मिलन को, किसको दूँ बतलाय।।