क्या, खुशहाल ज़िंदगी का पैमाना, तरक़्क़ी का लिबास होता है..? क्या, मशहूर हो जाना ही सूंकूँ-ए ज़िंदगी है, या इसका भी कोई अलहदा हिसाब होता है..? इसमें ना उतरन, ना कतरन से काम चलता है, ना, ये कपड़े से सिला हुआ, कोई हिज़ाब होता है! कड़ी मेहनत और ईमानदारी के मज़बूत धागे से, बुना हुआ, असली तरक़्क़ी का लिबास होता है। ♥️ Challenge-490 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।