अनसुलझी पहेली रसोई में खाना बनाने की उत्सुकता से लेकर, आत्मविश्वास की कमी के कारण उसे चखने की प्रक्रिया तक एक ऐसे अप्रत्याशित आदत का लगना जो जीवन के हर मोड़ को चखने के पश्चात ही उस पर विश्वास करने की अनुमति देता है एवं यही अप्रत्याशित आदत किसी व्यक्ति को यायावर बनने पर मजबूर कर देता है। इसके बुरे प्रभाव के बारे में ज्ञात होने के पश्चात भी बारम्बार इसी आदत को दोहराना ये प्रमाणित करने लगता है कि जीवनभर उस व्यक्ति को खतरा मोल लेने का एक शौक गहरा है। जीवन के हर पहलू को चखने के होड़ में कभी कभार अमृत तथा अधिकतर विष को चखने की वस्तुतः स्वाभाविक प्रक्रिया उसे जरूर परेशान करती होगी। मेरे ख़्याल से इस आदत से निजात पाना ही सफल जीवन के लिए बेहतर है, क्योंकि जीवन भंवर में हरपल यथोचित स्वाद का मिलना असंभव साबित होता आया है, फिर जीवनभर यात्री रहना किस दृष्टिकोण से सही है? शायद स्थिर जीवनयापन में अधिक आनंद होता होगा! -Rupam jha अंत तक पढ़ने हेतु शुक्रिया 🙏