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मेरे पलकों पर चाँद का पहरा हैं, अब कोई रात नहीं ह


मेरे पलकों पर चाँद का पहरा हैं, अब कोई रात नहीं होती 
झगडा दिलों का हैं, और यहाँ आँखो की नींद से मुलाकात नहीं होती 

दुसरो के गम पर खुशियाँ मनाते हैं कुछ नासमझ लोग 
दिल के लहजे में आए, उनकी इतनी औकात नहीं होती

                                                   - स्वप्निल माने

मेरे पलकों पर चाँद का पहरा हैं, अब कोई रात नहीं होती 
झगडा दिलों का हैं, और यहाँ आँखो की नींद से मुलाकात नहीं होती 

दुसरो के गम पर खुशियाँ मनाते हैं कुछ नासमझ लोग 
दिल के लहजे में आए, उनकी इतनी औकात नहीं होती

                                                   - स्वप्निल माने