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"""पौरुषता की व्यथा""" ( अनुशीर्षक

     """पौरुषता की व्यथा"""
          ( अनुशीर्षक देखें ) ----


"यह मात्र निजी दृश्य एवं अनुभव के संवेदना की व्यथा का निरूपण है।कुछ संवेदनायें सार्वभौमिक व नैसर्गिक अवश्य हो सकती है, परन्तु प्रत्येक संवेदना प्रत्येक की ही हो यह आवश्यक नहीं।"
     **************************
पुरुषत्व पुरुष की पीड़ा है या फिर उसका अभिमान प्रभो। 
निज अन्तर्मन में द्वण्द यही कर दे आकर समाधान प्रभो।। 
कितनी भी दुविधा हो मन में पर कहने का अधिकार नहीं। 
भावों का वेग प्रवेग बने पर स्थावर प्रतिकार नहीं।। 
गर चार रोटियाँ वह सेंकेे अवरोधों को कर दे किनार। 
तो गृह सदस्य ही कहते हैं यह है पौरुषता को अजार।। 
मैं इस समाज के बन्धन में निजता का हनन सहूँ कैसे?
     """पौरुषता की व्यथा"""
          ( अनुशीर्षक देखें ) ----


"यह मात्र निजी दृश्य एवं अनुभव के संवेदना की व्यथा का निरूपण है।कुछ संवेदनायें सार्वभौमिक व नैसर्गिक अवश्य हो सकती है, परन्तु प्रत्येक संवेदना प्रत्येक की ही हो यह आवश्यक नहीं।"
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पुरुषत्व पुरुष की पीड़ा है या फिर उसका अभिमान प्रभो। 
निज अन्तर्मन में द्वण्द यही कर दे आकर समाधान प्रभो।। 
कितनी भी दुविधा हो मन में पर कहने का अधिकार नहीं। 
भावों का वेग प्रवेग बने पर स्थावर प्रतिकार नहीं।। 
गर चार रोटियाँ वह सेंकेे अवरोधों को कर दे किनार। 
तो गृह सदस्य ही कहते हैं यह है पौरुषता को अजार।। 
मैं इस समाज के बन्धन में निजता का हनन सहूँ कैसे?