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दिव की ज्वलित शिखा सी उड़ तुम जब से लिपट गयी जीवन म

दिव की ज्वलित शिखा सी उड़ तुम जब से लिपट गयी जीवन में,
तृषावंत मैं घूम रहा कविते ! तब से व्याकुल त्रिभुवन में !

उर में दाह, कंठ में ज्वाला, सम्मुख यह प्रभु का मरुथल है,
जहाँ पथिक जल की झांकी में एक बूँद के लिए विकल है।

घर-घर देखा धुआं पर, सुना, विश्व में आग लगी है,
'जल ही जल' जन-जन रटता है, कंठ-कंठ में प्यास जगी है।

सूख गया रस श्याम गगन का एक घुन विष जग का पीकर,
ऊपर ही ऊपर जल जाते सृष्टि-ताप से पावस सीकर !

मनुज-वंश के अश्रु-योग से जिस दिन हुआ सिन्धु-जल खारा,
गिरी ने चीर लिया निज उर, मैं ललक पड़ा लाख जल की धारा।

पर विस्मित रह गया, लगी पीने जब वही मुझे सुधी खोकर,
कहती- 'गिरी को फाड़ चली हूँ मैं भी बड़ी विपासित होकर'।

part 1 part 1

#allalone  Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat Vishakha Sharma Neelam choudhary
दिव की ज्वलित शिखा सी उड़ तुम जब से लिपट गयी जीवन में,
तृषावंत मैं घूम रहा कविते ! तब से व्याकुल त्रिभुवन में !

उर में दाह, कंठ में ज्वाला, सम्मुख यह प्रभु का मरुथल है,
जहाँ पथिक जल की झांकी में एक बूँद के लिए विकल है।

घर-घर देखा धुआं पर, सुना, विश्व में आग लगी है,
'जल ही जल' जन-जन रटता है, कंठ-कंठ में प्यास जगी है।

सूख गया रस श्याम गगन का एक घुन विष जग का पीकर,
ऊपर ही ऊपर जल जाते सृष्टि-ताप से पावस सीकर !

मनुज-वंश के अश्रु-योग से जिस दिन हुआ सिन्धु-जल खारा,
गिरी ने चीर लिया निज उर, मैं ललक पड़ा लाख जल की धारा।

पर विस्मित रह गया, लगी पीने जब वही मुझे सुधी खोकर,
कहती- 'गिरी को फाड़ चली हूँ मैं भी बड़ी विपासित होकर'।

part 1 part 1

#allalone  Arohi singh 🌿 anjali vinod sharma khubsurat Vishakha Sharma Neelam choudhary