तड़पता भी है दिल तो कभी बहकता भी है दिल तुझ को क्यों खुदा समझता है ये दिल महक महक उठती हैं साँसे धड़क उठता है दिल समेटना चाहे तुझे अपनी बाहों में क्या अजीब पागल सा है दिल!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha ये दिल..