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सखी सुन रही! कोकिला गीत, लिया है !उसने उर कोजीत जो

सखी सुन रही! कोकिला गीत,
लिया है !उसने उर कोजीत
जो स्वभाव से ही स्नेहिल है,
जीवो से रहती घुल मिल है।
मन में लहराता प्रेम तरल है,
मादक स्वर में जो ओझल है।
‌ कैसे,? अनजानी हो सकती.
उसकी विह्वल प्रीति पुनीत।
सखी सुन रही कोकिला गीत।।

शकुंतला स्मरण

©Abhilasha Dixit शकुंतला स्मरण
सखी सुन रही! कोकिला गीत,
लिया है !उसने उर कोजीत
जो स्वभाव से ही स्नेहिल है,
जीवो से रहती घुल मिल है।
मन में लहराता प्रेम तरल है,
मादक स्वर में जो ओझल है।
‌ कैसे,? अनजानी हो सकती.
उसकी विह्वल प्रीति पुनीत।
सखी सुन रही कोकिला गीत।।

शकुंतला स्मरण

©Abhilasha Dixit शकुंतला स्मरण

शकुंतला स्मरण