शहर की पानी की टंकी से, सूरज उगा है मर्तबा पहली बहुत प्यासा लगा है सोख लेता है समन्दर रौशनी से ओंस के दृग बिंदु पीता हैं ज़मीं से चंद किरणों नें यहां सब कुछ ठगा है मर्तबा पहली बहुत प्यासा लगा है कल कुमुदिनी जो खिली मुरझा गई हैं सूर्य के जलपान से कुम्हला गई हैं देखो न इसका भी अपना दबदबा है मर्तबा पहली बहुत प्यासा लगा है सब कमल दल मिल दुहाई दे रहे हैं ताल,झरने यूं गवाही दे रहे हैं छोड़कर सागर मेरे पीछे लगा है मर्तबा पहली बहुत प्यासा लगा है रात की ठहरी हुई झीलों का जल स्वच्छ, नीला देखने में और शीतल सांस में पीकर कटोरा दे गया है मर्तबा पहली बहुत प्यासा लगा है #मौलिक रचना ✍अनुज कुमार सोलंकी सूरज की प्यास #गर्मी #सूरज #प्यास #कविता #कुमारअनुजसोलंकी #लॉकडाउन2