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अपने ईश्वर प्रदत्त गुणों की सामाजिक स्वीकृति न ह


अपने ईश्वर प्रदत्त गुणों की सामाजिक स्वीकृति 
न होने तक तुम्हें बड़ा होते हुए भी 
छोटा बनकर रहना पड़ता है

आंतरिक रूप से बड़े होने पर भी वाह्य रूप से 
तुम्हें छोटा और हेय ही समझा जाता है
तुमसे वैसा ही व्यवहार किया जाता है
 
पग पग पर तिरस्कृत,अपमानित 
व लज्जित किया जाता है 
तुम्हें अल्पज्ञ,क्षुद्र एवं गौड़ समझा जाता है

भीतर और बाहर का ये विक्षोभ एवं द्वन्द 
एक विद्रोह जन्मता है जो संभाले नहीं संभलता
परंतु इस विद्रोह को जो सह जाते हैं वो रह जाते हैं 
जो नहीं सह पाते वो ढह जाते हैं

©अब्र The Imperfect
  #ThePrideOfWriter