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किस किरदार में पेश करूं खुद को यहां हर शख्सियत दाग

किस किरदार में पेश करूं खुद को
यहां हर शख्सियत दागदार है!
किस पल का करूं मैं इंतजार
यहां हर लम्हा कर्जदार है!
किस ओर ऊंगली उठाऊं मैं
यहां हर हाथ का इशारा मेरी तरफ है!
किस दर्द का जिक्र करूं मैं
यहां हर मुस्कुराहट गिरवी रखी है!
किस सजा की बात करूं मैं
यहां हर इल्जाम मुझ पर है!
किस गवाह को पेश करूं मैं
यहां हर अदालत बिकाऊ है!
किस रब को याद करूं मैं
यहां हर दुआ बेफिजूल है!
किस हद में शामें गुजारूं मैं
यहां हर रात दीवानी है!
किस अंदाज में तुझे पुकारा करूं मैं
यहां हर राज बेनकाब है!
किस आंधी से गुफतगु करूं मैं
यहां हर झोंका लावारिश है!
किस बारिश में खुशबू बिखेरूं मैं
यहां हर मौसम पतझड़ है!!!

©Meenu Dalal@185
  #185

185 #Shayari

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