मैंने लिख दी अपनी आखिरी कविता भर दिया हर तरंगित शब्दों को समेट लिया अपने हर उतार चढाव को रोक लिया मन के उमड़ते हर भावों को लुढकती काली स्याही की तरह लुढका दिया मैंने आज अपने कलम - ए -दावात को और कह दिया अलविदा इस एक पड़ाव को जो हर समय मेरे साथ मेरा होकर रहा और समेट लिया मुझे इसकदर अपने आगोश में कि मैं भूल सा गया था इसके इतर भी एक दुनियाँ है मगर अब उसी दुनियाँ की तरफ चलता जा रहा हूँ जहाँ सिर्फ और सिर्फ मैं रहूंगा अपनी यादों के संग जिसमें बहुत सारी दुआएँ और बहुत सारा प्यार छुपा है फिर भी गला रूंधा है और आंखे डबडबाई है मगर क्या करें किस्मत का यही खेल है तो फिर चलते है सदा लेखन की गति तुझे अलविदा...... ©राघव रमण (R.J.) अंत भला तो सब भला