जर्रे-जर्रे ने जुटाया हैं हमॆ यहां हाज़िरी कॆ लिए... और कितना तबाह करोगे मुझको सिर्फ़ शायरी के लिए..। अब तुम क्यां-क्यां बनाओगे बच्चो को तालीम के नाम पे... क्यां आज आदमी होना क़ाफी नहीं हैं आदमी के लिए..। तबाही