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ख़ुशी, खोई है कहीं बहुत ढूंढा उसे पर वो मिली ही नही

ख़ुशी, खोई है कहीं
बहुत ढूंढा उसे पर
वो मिली ही नहीं .. 

फिर किसी रोज़ 
तेरा यूँ आना हुआ,
मुस्कुराए हुए था
हमें भी, ज़माना हुआ। 

बेतकल्लुफ़ थी वो
मुलाक़ातें हमारी,
बेसिरपैर की सारी
वो बातें हमारी ।
जागते-जागते गुज़री 
न जाने कितनी ये रातें हमारी।
भूल बैठे थे जैसे
परेशानियां वो सारी । 

हम थे तब अज़नबी
या है अब भी अज़नबी
मैं कह सकती नही
हाँ मगर ये जानती हूँ
मिले है जबसे ये दो सिरफ़िरे
ख़ुशी का हमारे अब 
कोई और ठिकाना न रहा । 

ख़ुशी खोई थी जो
आख़िर, मिल ही गई ..
लबों पर शरारत भी
देखो ठहर सी गई....

©Rooh_Lost_Soul
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