जोड़ जोड़ कर तिनको को था घौसला बनाया कुछ इस तरह पंछी ने था वह आशियाँ सजाया न जाने कितने दिन वो कितनी रात रहा बैचेन तब जाकर सपनों को अपने ये स्वरूप दे पाया पता था येभी नींव टिकी है बूढ़े एक दरख़्त पर फिर भी पंछी ने दरख़्त पर था विश्वास जताया इक दिन हवा के झोंके ने उजाड़ दिया सबकुछ दरख़्त देखता रहा बेचारा कुछ भी न कर पाया आया पंछी दंग रह गया देख कर इस हालत को जब इक तिनका जमीं पे दूजा आसमान पे पाया कोसा खूब दरख़्त को उसने भला बुरा कह डाला और अपनी बरबादी का जिम्मेदार उसे ठहराया खूब सफाई दी बूढ़े ने हर मुमकिन कदम उठाया बेगुनाही पर इस इल्जाम की साबित न कर पाया फिर वही हुआ जो होता आया इक लम्बे अरसे से रिहा हुआ सांसों की कैद से फिर बेकसूर इक साया कौन गलत था कौन सही मैं आज भी हूँ उलझन में न पंछी बना सका फिर घर न ही पेड़ पर पत्ता आया #चौबेजी पंछी और दरख़्त #चौबेजी #नज़्म #कविता #पंछी #दरख़्त #नोजोटो #nojoto #nojotohindi #poem #nojotopoetry #tree #bird