कोई मुकाम नहीं जिसे पा लूं इक रोज ये ताउम्र का सफर है मेरा, मै तो महज एक पत्ता हूं इसकी शाख पर ये तो पूरा शजर है मेरा| और इन नदियों,पहाड़ों रेतीले मैदानों से वाकिफ हूं मेरी गलियों की तरह ...... एक उम्र गुजरी है इस धरती पर ये भारत देश नहीं.... घर है मेरा|| ©' मुसाफ़िर ' #India #RepublicDay #Freedom #Indian #bharat #Shayari #Quotes