ये हृदय की रिक्तता है या गहन अनुरक्तता है कोकिलों ने बैन खोए ऋतुराज की या रुग्णता है कोंपलों की मुक्ति के स्वर अवरुद्ध कंटक शीर्ष पर हैं माटी ने सम्बल है खोया या बादलों की धृष्टता है बीज दुर्बल हो गएँ हैं या समय की शुष्कता है प्रेम का उत्सव है धरती या मरूथलों की संपदा है बदलते रहें हैं मौसम ये जगति की बाध्यता है किन्तु अवसर पा बदलना क्या मनुज को शोभता है सारी सीमा त्याग कर क्यों ये प्रकृति को भोगता है घट में रचनाकार बसता या महज़ उपभोक्ता है पशुओं का सा चर रहा है कैसी इसकी सभ्यता है #yoyou #yqreflection #yqnature #yqbeinghuman #yqlove #yqconsumerism #yqandnow