मैं,डूबती अपनी किश्ती का किनारा ढूँढता हूँ, गुमनाम शहर में जीने का सहारा ढूँढता हूँ। शोहरते इश्क में न जाने क्या-क्या नीलाम कर बैठा हूँ, अपनी जुब़ाँ को बेमुरव्वत,खुद को गुलाम कर बैठा हूँ।। छोड़ रेत की महल,उजड़े नशीमन दूबारा ढूँढता हूँ, अपनी हुर्रियत के वास्ते,लफ्जे जंग की पिटारा ढूँढता हूँ। मशरुफ थे इस कदर इश्क में,कई अरमां कत्लेआम कर बैठा हूँ, अपनी जुब़ाँ को बेमुरव्वत,खुद को गुलाम कर बैठा हूँ।। अपनी जख्मे दर्द बयाँ करु,ऐसी फासाना ढूँढता हूँ, मिले मरहम यदि मेरे ग़र की,ऐसी मयखाना ढूँढता हूँ। टुटी-फूटी भाषाओं में सही,मैं अपनी समसि बेलगाम कर बैठा हूँ, अपनी जुब़ाँ को बेमुरव्वत,खुद को गुलाम कर बैठा हूँ।। _Xn.niku #xnnikuअपनी जुब़ाँ को मुरव्वत.......