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●▬▬▬▬▬ ஜ۩۞۩ஜ ▬▬▬▬▬● जबसें चला हूँ मंज़िल की ओर बस

 ●▬▬▬▬▬ ஜ۩۞۩ஜ ▬▬▬▬▬●

जबसें चला हूँ मंज़िल की ओर बस मसाफ़त का फ़साना निकला,
जहाँ  ना  जानें  का  वादा  था  वहीं  आब-ओ-दाना   निकला।
ख़्वाहिशें  सुलगतीं   रही  सीनें  में बस  आवारा ख़्यालात  लिए,
फिरती  रही  ज़िंदगी  दर-बदर  डाल  डाल  आशियाना  निकला।
         
 ●▬▬▬▬▬ ஜ۩۞۩ஜ ▬▬▬▬▬●
 #आशियाना_team_alfaz
#new_challenge

There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio)
Today's Topic is 

 *आशियाना*
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जबसें चला हूँ मंज़िल की ओर बस मसाफ़त का फ़साना निकला,
जहाँ  ना  जानें  का  वादा  था  वहीं  आब-ओ-दाना   निकला।
ख़्वाहिशें  सुलगतीं   रही  सीनें  में बस  आवारा ख़्यालात  लिए,
फिरती  रही  ज़िंदगी  दर-बदर  डाल  डाल  आशियाना  निकला।
         
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 #आशियाना_team_alfaz
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