|| श्री हरि: ||
53 - श्रृंगार
'तू मेरा पुष्प मत तोड़।' श्याम अपने बड़े भाई का श्रृंगार करना चाहता है। इसे स्वयं सब प्रसाधन-सामग्री एकत्र करनी है। अब इसके देखे पसंद किए पुष्प, प्रवाल आदि कोई लेने लगे तो यह झगड़ेगा ही।
'अच्छा ले। तू ही ले ले इसे।' ऋषभ सीधा है। कन्हाई से झगड़ना उसे रुचता नहीं। अब उसके तोड़े फूल को यह नटखट अपना बता रहा है तो इसी का सही। दूसरा तोड़ लेगा वह।
'तूने मेरा पुष्प तोड़ा क्यों? इसे वहीं लगा दे।' श्याम तो झगड़ने का बहाना ढूंढता रहता है। भला, टूटा फूल कहीं फिर से टहनी में जुड़ा करता है। #Books