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मैं मिलता नहीं किसी से क्यूँ लोग यही हर दम क

मैं  मिलता नहीं  किसी से  क्यूँ  लोग  यही  हर दम कहते हैं
ये बात और है इस दुनिया में इन दिनों ज़रा कम हम रहते हैं

मैं  रोक  नहीं  पाता   हूँ  और  दर्द   हद  से  गुज़र  जाता है
इस दिल के टुकड़े होते हैं  और  उस  दर्द को  हम  सहते हैं

हाथ  छुड़ा   लिए  हैं  हर   हाथ  थामने  वाले   ने   ही  अब
मैं  दुनिया  को  समझाता  हूँ  साथ  अब   भी  हम  रहते हैं

मंज़िलों  पर  पहुंच  गए  हैं  शायद  जो  अलग  हो  गए  हैं
वरना  रास्तों  पर  तो  हमेशा  ही   साथ  तुम  हम  रहते  हैं

बहुत  दूर  तक गयी  थी जो सदा मैंने दी थी कहते हैं लोग
ये और  बात है  बहुत  दूर  से  ज़रा  दूर मेरे  सनम रहते हैं 

बस  बहुत हुआ अब और  अकेले नहीं चला जाता प्रशान्त
"बहुत थक चुके हैं हम" मुझसे ये अब  मेरे कदम  कहते हैं






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©प्रशांत शकुन "कातिब"
  लोगों का क्या है, 
वो तो उसे बस सीलन कहते हैं,
ये मैं जानता हूँ,
मेरे कमरे की दीवारों से आँसू बहते हैं।



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लोगों का क्या है, वो तो उसे बस सीलन कहते हैं, ये मैं जानता हूँ, मेरे कमरे की दीवारों से आँसू बहते हैं। #तन्हाई_मेरे_मन_की #मेरे_मन_के_पन्ने #pshakunquotes #प्रशांत_शकुन_कातिब #Poetry #Flower

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